एक स्त्री चाहिए.....!!
जिसके समक्ष मैं
मन से नग्न हो सकूँ
उतार फेंकूँ सारे मुखौटे
भूला सकूँ पुरुष होने का दम्भ
रो सकूँ ज़ार-ज़ार , जिसे कह सकूँ
पुरुष हूँ मगर , पीड़ा अनुभव करता हूँ
चाहता हूँ बिल्कुल माँ की तरह
तुम फेर दो हाथ बालों पर , गालों पर
पुरूष होते हुए भी कांधा चाहिए
कभी कभी मुझे भी
सिर्फ़ चमकता-दमकता बदन ही नहीं
एक स्त्री चाहिए , जिसे प्रेम करते हुए
पूजा भी कर सकूं , वासना से नहीं
श्रद्धा से जिसके चरणों को चूम सकूँ
जिसके स्पर्श मात्र से पुलकित हो उठे
रोम रोम मेरा , कर दूं पूर्ण समर्पण
विगलित हो अस्तित्व मेरा , मैं नारी बन जाऊं
वो पुरुष बन जाएं
उसमें मैं नज़र आऊँ , वो मुझमें नज़र आएं
एक स्त्री चाहिए , जिसे मैं उस तरह प्रेम कर सकूँ
जिस तरह एक स्त्री प्रेम करती हैं....!!
©Surya Kant