होली के वो पुराने दिन अब याद आते है।
लगायें थे जो गुलाल तुमने अपने हाथो से कभी मेरे चेहरों पर,
उनके वो अक्स आईने मे अब नजर आते है ।।
धुलने की कोशिस उन अक्सो को हज़ारो बार कर चुका हूँ।
अपनी इन कोशिसों मे नाकामयाब मै कई बार हो चुका हुँ।।
होली के रंग जब चेहरे पर कोइ लगाता हो ,
और आईने के सामने जाने से जब दिल घबराता हो।।
उन पलो मे भी तेरा अक्स मेरी आँखो में नजर आता हो ।।
मेरी आँखो को पहली बार तुमने ही नसीला बताया था।
इन आँखो को नसीला कोई और नहीं तुमने ही तो बनाया था।।
तेरे जाने के बाद बहुतों ने आँखो को नसीला बताया है ।
इन आँखो मे आज भी तेरा अक्स ही लोगो ने पाया है ।।
पता है अब मै रंगो और रंगीन दुनिया से दूर भगता हुं।
यही वजह है अब मै काले रंग पहनता हुँ।।
काले रंगो मे अब कोई रंग नहीं जजता है।
अब कोई कितनी भी कोशिश कर ले,
इन आँखो मे किसी और का रंग नहीं चढ़ता है।।
इन आँखो में अब भी तेरी याद और तेरी निशानियाँ दिखती है।
सामने वालो को इन आखो मे अब भी तेरी और मेरी कहानियाँ दिखती है।।
होली के वो पुराने दिन अब याद आते है।
लगायें थे जो गुलाल तुमने अपने हाथो से कभी मेरे चेहरों पर,
उनके वो अक्स आईने मे अब नजर आते है ।।.
©Rv goswami
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