कविता:-हशर ढल चुका है सूरज ना जाने कब सवेरा होगा | हिंदी Poetry Video

"कविता:-हशर ढल चुका है सूरज ना जाने कब सवेरा होगा अगर कुछ होगा तो वह तेरी जिंदगी में अंधेरा होगा धुआं सा छा गया है वीराना आसमान पर जल रहा है जमीन पर वो घर तेरा होगा इतने जख्म है सीने में जैसे छलनी में छेक जो ना हुआ किसी का वो हशर तेरा होगा बड़ी चाहत थी मेरे दिल में उजालों की पर अब तो हर बुझा हुआ चिराग तेरा होगा चाहे खूब है वारिस तेरे इस जहान में पर कहीं लावारिस पड़ा वजूद तेरा होगा पता नहीं कब क्या हो जाए ए जिंदगी आज यहां हूँ कल पता नहीं कहां बसेरा होगा ✍️ अभिमन्यु कुमार,"

कविता:-हशर ढल चुका है सूरज ना जाने कब सवेरा होगा अगर कुछ होगा तो वह तेरी जिंदगी में अंधेरा होगा धुआं सा छा गया है वीराना आसमान पर जल रहा है जमीन पर वो घर तेरा होगा इतने जख्म है सीने में जैसे छलनी में छेक जो ना हुआ किसी का वो हशर तेरा होगा बड़ी चाहत थी मेरे दिल में उजालों की पर अब तो हर बुझा हुआ चिराग तेरा होगा चाहे खूब है वारिस तेरे इस जहान में पर कहीं लावारिस पड़ा वजूद तेरा होगा पता नहीं कब क्या हो जाए ए जिंदगी आज यहां हूँ कल पता नहीं कहां बसेरा होगा ✍️ अभिमन्यु कुमार,

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