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सारे गम अपने तुम छुपा के कहो
जो भी कहना है मुस्करा के कहो
क्यों उदासी है छाई चहरे पर
राज दिल के नज़र मिला के कहो
हो चुकी बातें बहुत इशारों में
अब के हमको गले लगा के कहो
लग गया रोग इश्क का तुमको
नज्म लब पे कोई सजा के कहो
क्यूँ छुपाये हो चहरे को अपने
पर्दा रुख से अपने उठा के कहो
बात गर शर्म ओ हया की है
नज़रे अपनी सबसे चुरा के कहो
( लक्ष्मण दावानी )
16/12/2016
©laxman dawani
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