धूप से किया वादा नहीं भुलाया,
साए में अपना साया नहीं भुलाया।
दर्द की हसरत थी और चैन की भी,
भुलाया उसे पर सारा नहीं भुलाया।
मुझे इसलिए भी सुकूं देती है रौशनी
मैंने ज़ीस्त का अंधेरा नहीं भुलाया।
देखा नहीं बरसों से लौटा नहीं मगर,
कश्ती ने कभी किनारा नहीं भुलाया।
मुफलिसी ने खरीदें हैं जूते लेकिन,
पैरों ने कोई छाला नहीं भुलाया।
©Dhruv Sharma
Dhoop se kiya vaada nahin bhulaya.
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