White "शाम अपनी चादर ओढ़े खड़ी थी
और मेरे मन का पंछी अभी भी
किसकी राह पर निघाए लिए
इंतजार कर रहा था
मन पंछी कभी इस मुंडेर पर तो
कभी उस टहन्नी पर घुमा
शाम तो शाम ढल गई कबकी
मगर इंतजार अभितक ख़त्म नहीं हुवा।"
-LotusMali
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©Lotus Mali
#sad_quotes
"शाम अपनी चादर ओढ़े खड़ी थी
और मेरे मन का पंछी अभी भी
किसकी राह पर निघाए लिए
इंतजार कर रहा था
मन पंछी कभी इस मुंडेर पर तो