ज़ज्बात भी मेरे, इल्ज़ाम भी मुझ पर. क्या गुनाह मे | हिंदी कविता

"ज़ज्बात भी मेरे, इल्ज़ाम भी मुझ पर. क्या गुनाह मेरा, सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. किसी के हवस का शिकार होकर मौत ने गले लगा लिया चंद लोगों के जज़्बातों ने साथ दिया मेरा...रोते रोते मुस्काने का हुनर सीख लिया मैंने फिर अपना सफर अकेले ही तय किया मैंने... निकल पडी एक नयी दुनिया मैं..... ©Zindgi Ka Safar # priya"

 ज़ज्बात भी मेरे, इल्ज़ाम भी मुझ पर. 
क्या गुनाह मेरा, सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. 
किसी के हवस का शिकार होकर मौत ने गले लगा लिया 
चंद लोगों के जज़्बातों ने साथ दिया मेरा...रोते रोते मुस्काने का हुनर सीख लिया मैंने 
फिर अपना सफर अकेले ही तय किया मैंने...
निकल पडी एक नयी दुनिया मैं.....

©Zindgi Ka Safar # priya

ज़ज्बात भी मेरे, इल्ज़ाम भी मुझ पर. क्या गुनाह मेरा, सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. किसी के हवस का शिकार होकर मौत ने गले लगा लिया चंद लोगों के जज़्बातों ने साथ दिया मेरा...रोते रोते मुस्काने का हुनर सीख लिया मैंने फिर अपना सफर अकेले ही तय किया मैंने... निकल पडी एक नयी दुनिया मैं..... ©Zindgi Ka Safar # priya

ज़ज्बात

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