अपने- अपने मकबूलओं में हर शख्स मशगूल है
मगन होकर चमन खिल उठे तो धूप भी कबूल है
क्या पता अँधेरों की तौबा किए "गुनाहें" खींच ले
"फ़ज़ाएँ" उजाले की रौशनी से कुछ तो सीख लें
पोषित हो पंखुड़ियों में यूहीं "दाने" नहीं भर आते हैं
देवों का फ़ज़ल है,वर्ना किसान तो महज़ 'बो' आते हैं
©अनुषी का पिटारा..
#इसारा #अनुषी_का_पिटारा