सामने तुम थे
खामोशी से थके हुए कदम लिए घर में दाखिल हो रहे थे
देख कर तुम्हारा गुमसुम चेहरा मैं तुमसे पूछने चाहती थी
क्यों आखिर क्यों तुम इतने हताश हो
लेकिन तुमने मुझे मौका ही नहीं दिया
झट से मेरे मुहं पर दरवाजा बंद कर दिया
पटाक से दरवाजे की धड़ाम से मेरा दिल फिर एक बार आहत हो गया।
काश तुम समझ पाते दर्द बांटने से ही कम होता है
खुद को अंदर ही अंदर घुटाने से घुटन होती है
शायद तुम मुझे इस काबिल ही नहीं समझते हो
इसलिए तो तुम्हारी जिंदगी की हिस्सा होकर भी एक गुमनाम किस्सा बन कर रह गई हूं।
©Shilpa Modi
#काश तुम समझते