गुजरे जो कल, वो यादों के पल
आंखों से मेरी, बरसने लगे है।
पतझड़ ये कैसा, आया है मन में
हरियाली को हम तरसने लगे हैं।
तुमने किया था, इकरार ही क्यों,
पूछेंगे तुमसे, कभी जब मिलोगे।
टुकड़े हमारे बिखरे जो दिल के,
जगह से अपनी, दरकने लगे हैं।
24 जून 2022, 08.15 pm
©Gyaneshwaari singh
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