ईद का चांद करते है वो गुप्तगू हमसे ऐसे बेवाद होकर | हिंदी शायरी

"ईद का चांद करते है वो गुप्तगू हमसे ऐसे बेवाद होकर चलें जाते हैं जालिम हमसे दूर यूं ही फरियाद लेकर आना था उन्हें हमारे पास पर रह गए ईद का चांद बनकर...।। ©Rikshan Kshyap"

 ईद का चांद

करते है वो गुप्तगू हमसे ऐसे बेवाद होकर
चलें जाते हैं जालिम हमसे दूर यूं ही फरियाद लेकर
आना था उन्हें हमारे पास पर रह गए ईद का चांद बनकर...।।

©Rikshan Kshyap

ईद का चांद करते है वो गुप्तगू हमसे ऐसे बेवाद होकर चलें जाते हैं जालिम हमसे दूर यूं ही फरियाद लेकर आना था उन्हें हमारे पास पर रह गए ईद का चांद बनकर...।। ©Rikshan Kshyap

ईद का चांद....!

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