उलझी उलझी सी जिन्दगी में,
सुलझे - उलझे से बड़े बड़े ये ख़वाब,
कुछ मजबूरियां, छोटी -बड़ी सी कुछ गलतियां ।
उम्मीदों में डूबा, तन्हाई से भरा हुआ ये मन।
पल-पल कर गुजरते हुए ये दिन
और बेहतर से बत्तर हो रहा मेरा ये वक्तित्व ।
सच्चे कहे जाने वाले रिश्तों का,
साथ देने कि घड़ी में बीच कस्ती में छोड़ जाना।
बचपन से अब तक के किए हर संघर्ष का,
यूंही व्यर्थ जाते देखना।
किए हर उस वादे का,मां बाप से अपने
टूटता हुआ नजर आना ,।
बस अब नहीं रहा और सहने का, लड़ने का
इस जहन में जरा सा भी साहस।
नहीं है जरूरत अब इस दिल को किसी भी सहारे की
नहीं रहा भरोसा अपनी ही परछाई पर ।
बस है आखिरी उम्मीद
उस उपर वाले और समय से
जिसके लिए हम है खिलौना और
जीवन हमारा एक खेल.....
©@Shivam Rawat
#Kismat