कंहा गया
वो सावन।
पेड़ की टहनी पर डाल कर झूला
अकेले ही झूला, झूला हमने
न डर, न खोफ़ था, बेफिक्री थी।
आज डर है,
मेरी पैदाईश, मेरे पालन का,
क्या झूलूं, कंहा झूलू
अब, कौन से सावन मे,
अब, हर नज़र ललचाई,
हर मन, हवस समाई,
मुझे सिर्फ 'सामान' जानता है
हवस मिटाने का मकान मानता है
©arvind bhanwra ambala. India
कंहा गया वो सावन