बोझ जब से बढ़ गया है ज़िंदगी का
सिलसिला थम सा गया है मयकशी का
देखकर तनख़्वाह मैं ये सोचता हूँ
भाव कितना रह गया है आदमी का
इश्क़ मुझको रास आता ही नहीं पर
मैं छिपाता हूँ हुनर आवारगी का
हम असीरों को मोहब्बत तीरगी से
हम नहीं चाहेंगे कमरा रौशनी का
डायरी मेरी कई करती असर है
ये उदासी इक असर है डायरी का
सादगी ने तेरी है जादू चलाया
भाव रहता है ज़ियादा सादगी का
काम आना है नहीं मतलब अगर तो
फिर बताओ मुझको मतलब दोस्ती का
तेज़ भागा वस्ल में तो फिर हुआ यूँ
हिज्र में धीमे चला कांटा घड़ी का
घाव भरते इश्क़ के देखे हैं मैंने
पर नहीं था जादू वो चारागरी का
काम मिलता है सभी को ज़िंदगी में
काम मुझको मिल चुका दीवानगी का
आपने जो समझा है अपनी समझ से
ज़ाविया ये तो नहीं था शायरी का
©Shadab Khan
डायरी मेरी कई करती असर है
ये उदासी इक असर है डायरी का
its_tezmi Kavya @Mahi @sandhya maurya (official)