प्रेम-विवाह
हँसकर विदा हुई थी, क्योंकि वादे उसने हजार किए गए थे,
हसीन जिंदगी की चाहत में, उस दिन सोलह श्रृंगार किए थे।
प्रेम-विवाह तो था ही, लेकिन शायद विवाह तक प्रेम ही था,
जागती आँखों से भी सपने देखती थी, अंदाजा भी न था कि उसका नसीब सो गया था।
बरात आई, रस्में हुईं सात जन्मों के-साथ की औऱ सातों कसमें खाई गईं,
सारे खोखले नियम लागू हो गये, जैसे ही वो घर में लाई गई।
मोहब्बत बेशुमार जो दिखाई गई थी, वो ना जाने कब की हवा हो चली थी,
अब ये घर पराया है कहकर वो रिश्ते भी बदल गई थी , जहाँ बचपन में पली-बडी थी।
सबको खुश रखना था और काम भी सारे करने थे
शर्त इतनी सी थी कि, अपने आँसू छुपाकर रखने थे।
सैकड़ों उम्मीदें थीं और उसे हर-एक पर खरा उतरना था
सारे रिश्तों की वेदी पर उस सीता को, अकेले ही जलना था।
©Gunjan...✍
प्रेम विवाह