वफ़ा ए इश्क़ मोहब्बत की
कसमें जो तुम
झूठी खाते हो,
मैं राह तकती रह गई
तुम्हारे आने की
तुम वक़्त का दोष बताते हो,
ना मैं गले मिली
किसी रक़ीब से,
ना किसी से कोई उम्मीद लगा पाई
एक दफ़ा सोंच तो लेते
मैं सुबह से राह तक रही तुम्हारी
तुमने कैसे मेरे बग़ैर
ईद मनाई।
©शायर-गुमनाम।
#मैं और मेरी तन्हाई।