tumhein samaj kyun nahi aata ki शीर्षक:- तुम.............. कोई खुदा तो नही
किसी का जिस्म अपने रूह से जुदा तो नही
तुम भी आखिर इंसान हो कोई खुदा तो नही
सबकी अपनी जगह अहमियत है
सबकी अपनी अपनी हैसियत है
क्यों अपने को अकेला समझते हो तुम
तुम खुद अपनी पहचान के मालिक हो कोई गुमशुदा तो नही
तुम भी आखिर इंसान हो कोई खुदा तो नही
क्या है जो तुम नही कर सकते
फिर किस बात से डरते हो तुम
उठो और आगे बढ़ो आखिर किस बात से मुकरते हो तुम
अपनी काबिलियत दिखाने मे कोई पर्दा तो नही
तुम भी आखिर इंसान हो कोई खुदा तो नही
ये माना की वक़्त लगता है पहचान बनाने मे
फिर जरा वक़्त लगाओ खुद को आजमाने मे
खुद को आजमाना कोई खता तो नही
तुम भी आखिर इंसान हो कोई खुदा तो नही
गलतियां होती हैं तो होने दो
मगर उनसे सीखो और खुद को आगे बढ़ने दो
अरे तुम्हारे जिस्म मे भी जान है तुम कोई मुर्दा तो नही
तुम भी आखिर इंसान हो कोई खुदा तो नही!
©Prakash Vats Dubey