खुद टपकती छत में रहकर, मुझे शहर का आशिया दिया। ना | हिंदी कविता

"खुद टपकती छत में रहकर, मुझे शहर का आशिया दिया। ना जाने उस पिता ने कितने दर्द सह कर मुझे पढ़ने दिया। खुद तपती धूप में जलकर, मुझे घने जंगल की छाव दिया, ना जाने उस पिता ने कितने सपने राख कर मुझे ये तोहफा दिया, मेरी हर गलती पर डॉट कर भी मुझे फिर दुलार किया, ना जाने मेरी हर हार पर भी मुझसे केसे इतना प्यार किया, मेरे पिता ने मुझ पर अपना पूरा जीवन कुर्बान किया, तभी तो पिता से बढ़कर मेरे लिए कोई भगवान ना हुआ। ✍️ विशु"

 खुद टपकती छत में रहकर, मुझे शहर का आशिया दिया।
ना जाने उस पिता ने कितने दर्द सह कर मुझे पढ़ने दिया।

खुद तपती धूप में  जलकर, मुझे घने जंगल की छाव दिया,
ना जाने उस पिता ने कितने सपने राख कर मुझे ये तोहफा दिया,

मेरी हर गलती पर डॉट कर भी मुझे फिर दुलार किया,
ना जाने मेरी हर हार पर भी मुझसे केसे इतना प्यार किया,

मेरे पिता ने मुझ पर अपना पूरा जीवन कुर्बान किया,
तभी तो पिता से बढ़कर मेरे लिए कोई भगवान ना हुआ।

                                                                     ✍️ विशु

खुद टपकती छत में रहकर, मुझे शहर का आशिया दिया। ना जाने उस पिता ने कितने दर्द सह कर मुझे पढ़ने दिया। खुद तपती धूप में जलकर, मुझे घने जंगल की छाव दिया, ना जाने उस पिता ने कितने सपने राख कर मुझे ये तोहफा दिया, मेरी हर गलती पर डॉट कर भी मुझे फिर दुलार किया, ना जाने मेरी हर हार पर भी मुझसे केसे इतना प्यार किया, मेरे पिता ने मुझ पर अपना पूरा जीवन कुर्बान किया, तभी तो पिता से बढ़कर मेरे लिए कोई भगवान ना हुआ। ✍️ विशु

#fathers_love

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