कुछ तो था तेरे मेरे दर्मिया, समझ के भी ना समझ सके तुम ये खामोशियां।।
वो बात थे या जज्वत क्यों समझ न सके तुम वो अल्फ़ाज़।
हमारा रिश्ता कुछ अजीब था फिर भी एक दूसरे के बहोत करीब था।
चाहत तो कहीं तुझमें भी थी फिर क्यों रखी ये चूपिया.....
कुछ तो था तेरे मेरे दर्मिया.........
चाहते तुझेसे कुछ भी न थी क्यूकी चाहत तो सिर्फ तू था....
रिश्ता तो दिल से दिल का था फिर क्यों आईं दिलो में दूरियां...
चाह के भी ना समझ आई ये मजबूरियां🥺
माना बहोत लोग थे तेरे ,पर तू मेरा था ये गुरूर था मुझे 🥰
बिना कहे भी तू सब जान लेता था
फिर क्यों ना समझ सका जो मै कह न सकी तुझसे कभी।।।।
रिश्ते तो हमारे अवाद थे चाहते भी बेशुमार थे, फिर क्या तुम मुझे नाराज थे
क्यों बढ़ने दी ये दूरियां
क्यों न समझ सके मेरे जुवा की खामोशियां....🤐
कुछ तो था तेरे मेरे दर्मया🤝
समझ के भी ना समझ सके ये खामोशियां😓
©a.prakash
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