आंखों में बस गया है उस रात का सफर,
एहसास का सफर जज्बात का सफर,
उठ उठ कर रोज याद आता है मुझको
तेरे साथ आखरी उस मुलाकात का सफर,
सिरे चढ़ नहीं पाई हमारी पाक सी मोहब्बत,
आड़े आ गया था वो धर्म और जात का सफर
अब आंख बंद करते ही मुझे तोड़ देती हैं तनहाइयां,
सताती है मोहब्बत में मिली उस मात का सफर,
फिर सज धज कर चली गई थी तुम अपने साजन के संग,
हम खड़े देखते रहे थे वो तेरी बारात का सफर,
©Meharban Singh Josan
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