White फलक पे माँ बाप का दर्जा रखा है मैंने
बाकी कहाँ किसी का कर्जा रखा है मैने
जुबाँ का इस्तेमाल ही कम करना है मुझे
तुम कहते रहो मुँह में जर्दा रखा है मैंने
कहीं सच जुबाँ पे आया तो बिखर जायेंगे
रिश्तों की खातिर थोड़ा पर्दा रखा है मैंने
कोई क़ीमत नहीं ली उसे खुश रखने की
ऊपर से बोझ उसके सर का रखा है मैने
उजालों ने साथ छोड़ा तो क्या करते फिर
अंधेरों से याराना उम्र भर का रखा है मैंने
न फ़िदा हूँ उनके हुस्न-ओ-अदाओं पे तो
बेवज़ह मुलाकातों पर पहरा रखा है मैंने
उनसे भी तो उम्मीद ही कहाँ रखी जिनसे
रिश्ता मोहब्बत का गहरा रखा है मैंने
©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)
#आजाद ग़ज़ल