आज नए भारत में हिंदी बोलने वाला
खुद को असहज क्यों महशूश कर रहा..??
क्या हिंदी बोलना, पढ़ना बुरी बात है...??"
"आज हमारे ही देश में विश्व की सबसे प्राचीन लिपि को
दरकिनार कर उन्हें दफ़न होने पर मजबूर किया जा रहा है,
बड़े-बड़े विद्यालयों, दफ्तरों के द्वारा भी हमपे ज़बरन
यूरोपीय भाषा को थोपा जा रहा आख़िर क्यों..??"
"क्या हमारी संस्कृति, सोच इतनी स्मार्ट, आधुनकि,
और वैश्विक पटल पर इतनी आगे बढ़ गयी है
जो हम अपनी मातृभाषा के साथ छल,
कपट करना शुरू कर दिए है..!"
आख़िर क्यों हम हिंदी बोलने में शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं
खुद को..? क्या कमी है हमारी प्राचीन लिपि में...?
जो हम उसे वैश्विक पटल पर, सेमिनारों में बोलने,
सुनने से कतराने लगे हैं..??"
"कब तक हिंदी को अपने ही देश में
विरोध का सामना करना पड़ेगा..
कब तक अपने ही लोगों के बीच उसे
सौतेलापन का सामना करना पड़ेगा..?!?"
©rashmi sharma
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