पूरा साल यूंही जज़्बातों के उतार चढ़ाव में निकल गया ,
कोई रूठा तो कोई करीब आ गया ,
रिश्तों की उठा पटक पूरे साल चलती रही ,
किसी ने पूछना उचित नहीं समझा की कैसे हो ,
और किसी का पूरा साल ख्याल रखने में निकल गया ,
कोई जुड़ रहा था नए रिश्तों की डोर में और
किसी के हाथ से रेत की तरह पुराना रिश्ता फिसल गया,
कोई उम्र भर के लिए चला गया ज़िंदगी से और
कोई उम्र भर का साथ देने का वादा कर गया ,
गर हस्ता हूं भरी महफिल में मैं तो इसका मतलब
ये नही कि मैं टूटा नहीं हालातो से ,
पर हौसले बुलंद है और मां की दुवाओं का असर कि
कई बार गिरा पर हस्ते हुए हर बार हर मुसीबत से निकल गया ।
पूरा साल यूंही जज़्बातों के उतार चढ़ाव में निकल गया।।
©Anshul srivastava
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