अभी से तुम्हारे दीदार को रोज़ तरसता हूं। मैं ज्येष | हिंदी Shayari

"अभी से तुम्हारे दीदार को रोज़ तरसता हूं। मैं ज्येष्ठ होकर भी, अषाढ़ सा बरसता हूं।। माना तुम्हें महसूस भी, रगों में करता हूं मैं। यार फ़िर भी तुम्हारी तड़प में झुलसता हूं।। ©Shivank Shyamal"

 अभी से तुम्हारे दीदार को रोज़ तरसता हूं।
मैं ज्येष्ठ होकर भी, अषाढ़ सा बरसता हूं।।

माना तुम्हें महसूस भी, रगों में करता हूं मैं।
यार फ़िर भी तुम्हारी तड़प में झुलसता हूं।।

©Shivank Shyamal

अभी से तुम्हारे दीदार को रोज़ तरसता हूं। मैं ज्येष्ठ होकर भी, अषाढ़ सा बरसता हूं।। माना तुम्हें महसूस भी, रगों में करता हूं मैं। यार फ़िर भी तुम्हारी तड़प में झुलसता हूं।। ©Shivank Shyamal

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