तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है ,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है ,
ऐशहर मुझे तेरी औक़ात पता है ,
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है ,
थक गया है हर शख़्स काम करते - करते ,
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है ,
गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास ,
तेरी सारी फुर्सत तेरा इतवार कहता है ,
मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं ,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है ,
जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा ,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है ,
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे ,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है ,
बड़े - बड़े मसले हल करती थी पंचायतें ,
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है ,
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में ,
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है ,
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं ,
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है... राहुल प्रधान
#StarsthroughTree