अंधकार में दिया जलाना सबके बस की बात नहीं गिरे ह | हिंदी Poetry

"अंधकार में दिया जलाना सबके बस की बात नहीं गिरे हुए को गले लगाना सबके बस की बात नहीं मन के मौन समंदर में जब आंधी उठी पीड़ाओं की, पीड़ाओं को पीकर जीना सबके बस की बात नहीं। ©khusboo bagri"

 अंधकार में दिया जलाना
 सबके बस की बात नहीं 
गिरे हुए को गले लगाना 
सबके बस की बात नहीं
मन के मौन समंदर में
 जब आंधी उठी पीड़ाओं की,
 पीड़ाओं को पीकर जीना सबके बस की बात नहीं।

©khusboo bagri

अंधकार में दिया जलाना सबके बस की बात नहीं गिरे हुए को गले लगाना सबके बस की बात नहीं मन के मौन समंदर में जब आंधी उठी पीड़ाओं की, पीड़ाओं को पीकर जीना सबके बस की बात नहीं। ©khusboo bagri

पीड़ाओं को पीकर जीना सबके बस की बात नहीं।

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