अंधकार में दिया जलाना
सबके बस की बात नहीं
गिरे हुए को गले लगाना
सबके बस की बात नहीं
मन के मौन समंदर में
जब आंधी उठी पीड़ाओं की,
पीड़ाओं को पीकर जीना सबके बस की बात नहीं।
©khusboo bagri
पीड़ाओं को पीकर जीना सबके बस की बात नहीं।
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