अंतः मन के सूने पन को
कोई आशा हरियाली कर दे
पीले सरसों का खलिहान
गेहूं की सुनहरी बाली कर दे।
कर दे सावन जैसा क्षण
भाव बयार मतवाली कर दे
झूला झूले अल्हड़ बचपन
उम्र का बोझा खाली कर दे।
कर दे तरल रूंधे कंठो को
हृदय,राग मेघ मल्हारी कर दे
अधर त्यागे मौन बंधो को
हर शब्द-शब्द फुलवारी कर दे।
कर दे पर्वत भी स्वप्नों को
पर हिम्मत मेरी कुदाली कर दे
विराम हो सब अंतः द्वंदो को
आत्म शांति की बहाली कर दे
कर दे तृष्णा को आमंत्रित
कवित्व गंगा का पानी कर दे
कंटको से हूं भला परिचित
मुझे कविता का माली कर दे।।
©Lokendra Thakur
#लोकेंद्र_की_कलम_से