इश्क़ के टुकड़े कहूं या मिल्कियत अपनी .... कुछ सूख | हिंदी शायरी

"इश्क़ के टुकड़े कहूं या मिल्कियत अपनी .... कुछ सूखे गुलाब निकले हैं आज पुरानी किताबों से.... ©I M MALIK"

 इश्क़ के टुकड़े कहूं 
या
 मिल्कियत अपनी ....
कुछ सूखे गुलाब निकले हैं 

आज पुरानी किताबों से....

©I M MALIK

इश्क़ के टुकड़े कहूं या मिल्कियत अपनी .... कुछ सूखे गुलाब निकले हैं आज पुरानी किताबों से.... ©I M MALIK

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