कविता - पितृत्व प्रेम
घर से दूर रहकर जब जब मैने पिता से बातें की...
हमेशा एक ही सवाल
कैसी चल रही है नौकरी?
नौकरी के होते हुए भी
उनका हमेशा पूछ लेना
बेटा!!
पैसे तो नहीं चाहिए तुम्हें..
घर से वापसी पर बिन कहे
जेब में पैसे का रख देना
और घर के हाल पूछने पर खुशी से
झूमते हुए कह देना...सब बढ़िया है...
बेटा!!
तुम खुद का ख्याल रखना
तुम्हारी चिंता में माँ कई दफा रो देती है
अपनी आंखों के आसूं माँ की झोली में डाल
किस तरह पिता अपने पिता होने का निःस्वार्थ
प्रेम परोस देते हैं
सच ......
पिता होने के लिए पिता जैसा बनना पड़ता है।।
©जय
#DiyaSalaai