हां मैं ठीक हूं।
शायद रातें लंबी हो गई हैं,
तो ज्यादा देर जाग लिया करती हूं।
कुछ करने को खास है नहीं,
तो कुछ अनसुलझी बातें खुद में सुलझा लिया करती हूं।।
हां मैं ठीक हूं।
सर्द हवाओं का मौसम है आजकल,
ये ठंडी हवाएं थोड़ा चुभती है सांस लेने में।
कुछ देर घबरा कर,
आंख बंद कर आहें भर लिया करती हूं।।
हां मैं ठीक हूं।
दिन तो कट जाता है लोगों के बीच में आराम से,
शाम को काम के बीच खुद को व्यस्त कर लेती हूं।
किसी को खास कहने को यूं तो कुछ है नहीं,
पर कभी खुद को खुद से सारे आम कर देती हूं।।
हां मैं ठीक हूं।
चेहरे पर मुस्कान, आंखों में उम्मीद,
सच है या झूठ कुछ कह नहीं सकते।
सब पूछ लेते है कैसी हो? सब ठीक तो है ना?
मुस्कुरा कर, सर हिला कर, मैं ठीक हूं कह दिया करती हूं।।
हां मैं ठीक हूं।
हां बाकी ये सब छोड़ो, मैं तो ठीक ही हूं।।
-लफज-ए-आशना "पहाड़ी"
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©दीक्षा गुणवंत
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