विश्वास की बेल लगाई थी
बड़े प्यार से
लेकिन न जाने कैसे सूख गई
न घृणा थी न द्वेष था प्यार था असीमित
जाने कौन सा धुआँ
कर गया प्रदूषित
जिससे वह मुरझा गई लेकिन हार नही मानूंगी मरते दम तक फिर से सींचूंगी
स्नेह और प्रेम के जल से
इस बार थोड़ी ममता भी मिला दी
और वात्सल्य भी
सब देखना
फिर से लहलहा उठेगी मेरी विश्वास की बेल
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