-मज़दूर-
सूना फ़ागुन सूना सावन, है सूना मेरा रक्षाबंधन
मेरे बस में बस मेहनत है,न मनता त्यौहार ये पावन
जीवन भर मैं रहा हूँ बेबस,हे ईश्वर! मेरा आसरा बन।।
हीन जान दिया सबने ताना,मुझको नाक़ाबिल है माना
करूँ भी क्या,न मेरे बस में,सोचें जो भी,है उनका मन
जीवन भर मैं रहा हूँ बेबस,हे ईश्वर! मेरा आसरा बन।।
जो न मिला मुझको जीवन मे,उसका न है खेद मुझे अब
किन्तु बनाया जो मेहनत से,छीन रहा है क्यों विस्थापन?
जीवन भर मैं रहा हूँ बेबस,हे ईश्वर! मेरा आसरा बन।।
मिले मुझे कुछ अवसरवादी,मेहनत मेरी जल्द भुला दी
विपदा के मौसम में जाना, मानवता से बढ़कर है धन
जीवन भर मैं रहा हूँ बेबस,हे ईश्वर! मेरा आसरा बन।।
फल ऐसा मुझको मिल जाए,मेहनत से जीवन कट जाए
पढ़ा सकूँ बच्चों को अपने,सजा सकूँ मैं इनका बचपन
जीवन भर मैं रहा हूँ बेबस,हे ईश्वर! मेरा आसरा बन।।
केवल तुझसे आस लगाए,आलोकित है यह मेरा मन
अप्रिय एक पहर तक हूँ मैं,ढले पहर तो फिर मनभावन
जीवन भर मैं रहा हूँ बेबस,हे ईश्वर! मेरा आसरा बन।।
-Rakesh Lalit
©Rakesh Lalit
#मजदूर #Labourday