कितनी दफा टूटकर फिर उभर आता रहा हूं लेहर हूं ज़िं | हिंदी कविता
"कितनी दफा टूटकर फिर उभर आता रहा हूं
लेहर हूं ज़िंदगी को दोहराता रहा हूं
हर ग़म के दरिया दिल में उतारता रहा हूं
ख़ामोश हूं सबकुछ अपनाता रहा हूं
गहराईयां समेट कर अब साहिल पे आया हूं
समंदर हूं समंदर में भीगने आया हूं
#Sarfaraj"
कितनी दफा टूटकर फिर उभर आता रहा हूं
लेहर हूं ज़िंदगी को दोहराता रहा हूं
हर ग़म के दरिया दिल में उतारता रहा हूं
ख़ामोश हूं सबकुछ अपनाता रहा हूं
गहराईयां समेट कर अब साहिल पे आया हूं
समंदर हूं समंदर में भीगने आया हूं
#Sarfaraj