आजमाइश इक नुमाइश की तरह वह करती रही,और में महज़ इस इक्तेफाक में एकतरफा संयोग बना रहा।।
इसलिए,
अकेला रहता हूं तो ख़ुश रहता हूं।।
सब बेगाने है इस अजनबी शहर की भीड़ में,जहां रहनुमा है हर कोई पर रास्ता कोई नहीं है,यहां बुलाता तो है हर कोई पर जाता कोई नहीं है।।
इसलिए,
अकेला रहता हूं तो ख़ुश रहता हूं।।
कुछ कहा होगा किसीने मुद्दतों बाद शिद्दत-ए-एहसास से,शायद नहीं पढ़ा होगा कभी मेरी आखों में बसी इबारत को, क्या मुकम्मल सासों में मैं जी उठा दोबारा?
अब आरज़ू है कि तू कभी फुर्सत में आना।
इसलिए,
अकेला रहता हूं तो ख़ुश रहता हूं।।
Rohit budakoti 🙏
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