तेरे सिवा किसी को पुकारा नहीं..
क्यों रो कर शिकायत करते हो कोई हमारा नहीं
माँ के साये से बढ़ कर जग में कोई सहारा नहीं
घर जला कर गरीब का बांधते हो ऊँची हवेली
ये हवेली तुमको मुबारक हमें ऐसी छत गवारा नहीं
आज मेरे लरज़ते होंठों की लाज रख ले ऐ खुदा
मुश्किल में कभी तेरे सिवा किसी को पुकारा नहीं
वो क्या जाने शिद्दत क्या है गरीबी की
जिसने गरीबो में कभी वक्त गुज़ारा ही नहीं
इस चमन में है शामील खून मेरे बुजुर्गो का
और तुम कहते हो इस पर हक़ तुम्हारा नहीं
मुसाफिर शाम हुई तुम क्यों घर अपने जाते नहीं
तुम ने ही तो वक्ते रुख्सत उस को पुकारा नहीं
©officialmisti
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