फिर बरसों के मोह को एक ज़हर की तरह पीकर उसने काँपत | हिंदी कविता Video

फिर बरसों के मोह को
एक ज़हर की तरह पीकर
उसने काँपते हाथों से
मेरा हाथ पकड़ा!
चल! क्षणों के सिर पर
एक छत डालें
वह देख! परे – सामने उधर
सच और झूठ के बीच –

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