याद है तुम्हैं वो दौर
जब तुम रूठ-रूठ कर पल-पल मुझे सताती थी,
मेरी हर नादानी हस्ते हुए अपनी सखियों को बताती थी,
और जब मैं रूठ जाऊ तो इश्क़ की रंगीन चादर का वास्ता देकर अपना हक़ जताती थी,
शायद तुम्हे मालूम नहीं तुम्हारी वही शखियां रोज मेरी कविताएं सुनने मेरी छत पर आती थी..
और जब सब मुझे चिढ़ाते थे तो उस मन्द मुस्कान से तुम भी शर्माती थी..
याद है तुम्हें?
©Tarun Kandpal