घर ढूंढते है
घर अपना छोड़ एक कमरे मे घर छोड़ते है
गैरो की गलियों मे अपनेपन का शहर ढूंढते है
परिंदों की तरह दूर निकल तो जाते है घर से
पर घर का प्यार ही हर दम ढूंढते है
जो किसी की बोली करे झल्ली मन को
अपनो की बोली का मरहम ढूंढते है
हा आसमा की रौनक मन को लुभाती है
पर अपने पेड़ की याद कहा भुलाई जाती है
अंजान राहों में अपना सा दर ढूंढते है
गैरो की गलियों में अपनेपन का शहर ढूंढते है
घर अपना छोड़ एक कमरे में अपना घर ढूंढते हैं
©Anujaa