कोई मेरे भी दर्द को पहचान लो,
मैं भटक रहा हूं, मुझे भी कोई पनाह दो।
मैं तिनका तिनका बिखरा हूं,
कोई मुझे समेट कर माला बना दो।
कोई मेरे भी ज़ख्म पर मलहम लगा दो,
पल भर ही सही, मुझे थोड़ी सांत्वना दो।
मैं अंदर से मर गया हूं,
मेरे मालिक मुझे भी जीने की वजह दो।
कोई मेरे हिस्से की ख़ुशी लौटा दो,
मैं मुशाफिर, मुझे ना इतनी सजा दो।
मेरे पंखों को खोल,
मुझे भी उड़ने का हौसला दो।
©Shruti
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