किस्मत तो मेरी अपनी है! हर जगह आज़मा लेंगे
आप आइए पास बैठिए, आप पर भी लूटा देंगे।
ज़माने की ना फ़िकर है मुजको, ना ज़माने को हे मेरी!
ज़रूरते पूरी ना हुई थी, अब ज़माना बना देंगे।
भिख ना मिली वक्त से ! ना मेहरबां हुआ था साकी!
मेरे हर दर्द की बुनियादों पे अब मेखाना सजा देंगे।
मेरे चाहने वालो में हो आप आराम से फूलो फलों!
दुश्मनों के नाम पे तो दो-चार कंपनी बना लेंगे।
दुनिया के महोल्ले में तुम हमदर्दी दिखाना मत!
हर इंसान की खूबी है यहाँ की उधार मांग लेंगे।
बात तुम्हारी और मेरी रहेगी ये तो सब कहते है, मगर!
आफ़तें अपनी छुपा लो, की लोग अफ़साना बना लेंगे।
तु कोन होता हे? क्या हैसियत तेरी “सन्दिग्ध”?
यहाँ दोलातमंदो ने चाहा तो हर कलम झुका देंगें।
~ सन्दिग्ध
©Shreyashkumar Parekh
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