बहोत देखा लोगों का मैने शराफत
लबों पर है मुस्कान अन्दर गलाजत
दगा शआर अय्यार मक्कार हो तुम
चुगलखोरी गीबत में सरदार हो तुम
बनाते हो कैसे ये मासूम चेहरा
आंखों में दिखता है होशियार हो तुम
बुराई ना करते गर होती मोहब्बत
बहोत देखा लोगों का मैने शराफत
सच बात होती है कड़वी ये कहना
बातों से लोगों का दिल चीर देना
अदाओं से मन में उतर जाते हो तुम
वादों से अपने मुकर जाते हो तुम
बता कर के लोगों को देते हो सदका
बयां करते रहते हो खुद की सखावत
जख्मो पे मिर्ची लगाने की आदत
बहोत देखा लोगों का मैने शराफत
©sageer Khan
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