White उदास हाथों पे शूख मेहंदी रचा रही है
वो अपने हाथों से अपनी मय्यत सजा रही है
वह निम पागल सी एक लड़की हमारी खातिर
ज़माने भर की अज़ियतें सर उठा रही है
ज़मीन वालों ने उसपे जो आसमाँ गिराए
वो छत पर बैठी खुदा को किस्सा सुना रही है
तमाम कॉलेज में ऐसा लड़का कोई नहीं है
वो मुझ पर शर्तें सहेलियों से लगा रही है
वो मेरी आँखों के सदके अपनी तमाम हस्ती
बेगैर सोचे बेगैर समझे लुटा रही है
बता रही है उदासियों के वो असल मायने
वो अपने बच्चों को मेरी ग़ज़लें सुना रही है
बेगैर तेरे हमारा जीना है कैसा जीना?
वो रोते रोते चिराग-ए-हस्ती बुझा रही है
खोतूत जिन को समझ रही है वह सिर्फ़ कागज
खोतूत कब, वो तो एक ज़माना जला रही है
वो लिख रही है मुहब्बतों पे कहानी नाज़ुक
मगर नतीजा वो बार-ए - दिगर मिटा रही है
©(Nazuk nazuk )
#milan_night nazuk