क्या बताये कोई कितने गम दबाये बैठा है ।
हँसता चेहरा जख्म सिने लगाये बैठा है ।।
उम्र कि दहलीज पे है तन्हाईयों का बोझ।
आदमी खुद अपनी मिट्टी उठाये बैठा है।।
है तमाशा जमाने मे उसे बताये कोई।
जो गैरों के आगे आँसु बहाये बैठा ।।
मिलती नहीं खुदा से भी मुक्कमल सी भिख ।
बेकार क्यों किसी से आस लगाये बैठा है ।।
"भूपेंद्र"
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