आंखों मे काजल और,
जुल्फों मे गुलाब है,
ये सावन की कालीघटा है,
या छलकते जाम का, शराब है।
कुछ भी हो जाने मन,
बस, तू जन्नत की हूर है,
तेरा नूर भी बेहिसाब है।
हसरत है, तुम्हारी अदाओं मे,
सदा के लिए खो जाऊँ मै,
ये जो तेरी आ़खे,है, नील गगन सी,
मै उसी मे छूप जाऊँ,
यही जिंदगी का आखरी ख्वाब है।
©ब्रजमोहन पांडेय
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