मैं जमाने से हार जाऊ ये बात तय नही हैं जो तुझसे हा | हिंदी Poetry

"मैं जमाने से हार जाऊ ये बात तय नही हैं जो तुझसे हार गई मैं तो मेरी हार नही हैं, की जंग में अक्सर सभी आगे निकलते हैं जो पीछे मुड़ गई मैं तो मेरी हार नही हैं, कोई रंजिश कभी तू कर अगर मुझकों पाने की मैं खुद चल कर अगर आयी तो ये मेरी हार नही हैं, सुना है आज महफिल से तन्हा वो लौट आये हैं उनके रोने से छलके अश्क़ मेरे तो ये मेरी हार नही हैं। माधवी मधु ©madhavi madhu"

 मैं जमाने से हार जाऊ ये बात तय नही हैं
जो तुझसे हार गई मैं तो मेरी हार नही हैं,

की जंग में अक्सर सभी आगे निकलते हैं
जो पीछे मुड़ गई मैं तो मेरी हार नही हैं,

कोई रंजिश कभी तू कर अगर मुझकों पाने की
मैं खुद चल कर अगर आयी तो ये मेरी हार नही 
हैं,

सुना है आज महफिल से तन्हा वो लौट आये हैं
उनके रोने से छलके अश्क़ मेरे तो ये मेरी हार नही हैं।
               माधवी मधु

©madhavi madhu

मैं जमाने से हार जाऊ ये बात तय नही हैं जो तुझसे हार गई मैं तो मेरी हार नही हैं, की जंग में अक्सर सभी आगे निकलते हैं जो पीछे मुड़ गई मैं तो मेरी हार नही हैं, कोई रंजिश कभी तू कर अगर मुझकों पाने की मैं खुद चल कर अगर आयी तो ये मेरी हार नही हैं, सुना है आज महफिल से तन्हा वो लौट आये हैं उनके रोने से छलके अश्क़ मेरे तो ये मेरी हार नही हैं। माधवी मधु ©madhavi madhu

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