१. सन् १८५७ में जब लक्ष्मी की तलवार लहराई थी,
उस मंगल के विद्रोह से फिर इरादों में मजबूती आई थी।
गए कुचल दिए थे आंदोलनों को पर हिम्मत कहा कुचली जाती,
फिर खड़ी हुई थी ये क्रांती, जब आजाद भगत की बारी आई थी..।।
२. फिर पंक्ति में आजादी की कई लाल निकल आए थे..,
नेताजी सुभाष भी संग आजाद हिंद फौज लाए थे..।
आसान नही थी राह आजादी की, पग पग में खून बहाया था..,
कई वीरो ने शहादत दी फिर तीन रंगों को संग मिलाया था..।।
३. बर्फ पर नंगे बदन लिटा दिए, डंडों की कई बौछार हुई,
पर ओ सशक्त पीठ टिकी रही,फिर तानाशाह की हार हुई..।
क्रांति की फिर लहर बड़ी तो अंग्रेजो को धूल चटाया था...,
वतन परस्तो के बलिदान से १५ अगस्त को सर्वप्रथम आजादी का तिरंगा लहराया था....।।
४. पर फिर भी ये आजादी पूर्ण रूप साकार ना हुई,
विभाजन के रूप में देश की फिर हार हुई..।
बाद इसके भी चैन न था चोरों ने नज़र गड़ाई थी,
65-70, कारगिल में पिट पीछे तलवार चलाई थी..।।
५. पर बुद्धिहीन न वे जान सके, इस धरती पर जन्मे है कई मतवाले,
देश की सुरक्षा के लिए सरहद पर खड़े है कई रखवाले...।
परवाह किए बिना जिसने जान की बाजी लगाई है,
आजादी का अमृत मंथन कर जिसने आजादी माथे सजाई है..।।
©ykv
#आजादी