क्या होली क्या दिवाली हर एक त्योहार भूल गए
हम कमाने क्या निकले अपना परिवार भूल गए
अब घर जाते हे तो लगता हैं हम मेहमान आएं हैं
जिम्मेदारियों के चक्कर में अब घर बार भूल गए
अब खुलती हैं आंख तो रोज़ भागते है काम पर
कब होती हैं शाम और कब होती हैं सवार भूल गए
©Rama K Suthar