मैंने देखा है बदलते हालातों को, मैंने हालातों में | हिंदी Poetry

"मैंने देखा है बदलते हालातों को, मैंने हालातों में लोगों को बदलते देखा है मैंने खुद की मौजुदगी पर अपने वजुद को खलते देखा है। मैंने देखा है मंजर अपनी तबाही का, मैंने खुद को तिल तिल मरते देखा है मेरे बिखरे तिनको पर मैंने उसे संभालते देखा है मैंने देखा है चिंगारी बढ़ते , मैंने अपना कल को आग में जलते देखा है, मैंने अपनी आशियाँ की राख से उसका घर बनते देखा है। मैंने देखा है गिरते लोगों को, मैंने उन्हें नज़रों से उतरते देखा है मैंने देखा है खुद को बदलते मैंने खुद को खुद के लिए संवरते देखा है। ©Advitiya goswami"

 मैंने देखा है बदलते हालातों को, 
मैंने हालातों में लोगों को बदलते देखा है
मैंने खुद की मौजुदगी पर अपने वजुद को खलते देखा है।

मैंने देखा है मंजर अपनी तबाही का, 
मैंने खुद को तिल तिल मरते देखा है
मेरे बिखरे तिनको पर  मैंने उसे संभालते देखा है 

मैंने देखा है चिंगारी बढ़ते ,
मैंने अपना कल को आग में जलते देखा है,
मैंने अपनी आशियाँ की राख से उसका घर बनते देखा है। 

मैंने देखा है गिरते लोगों को, 
मैंने उन्हें नज़रों से उतरते देखा है
मैंने देखा है खुद को बदलते
मैंने खुद को खुद के लिए संवरते देखा है।

©Advitiya goswami

मैंने देखा है बदलते हालातों को, मैंने हालातों में लोगों को बदलते देखा है मैंने खुद की मौजुदगी पर अपने वजुद को खलते देखा है। मैंने देखा है मंजर अपनी तबाही का, मैंने खुद को तिल तिल मरते देखा है मेरे बिखरे तिनको पर मैंने उसे संभालते देखा है मैंने देखा है चिंगारी बढ़ते , मैंने अपना कल को आग में जलते देखा है, मैंने अपनी आशियाँ की राख से उसका घर बनते देखा है। मैंने देखा है गिरते लोगों को, मैंने उन्हें नज़रों से उतरते देखा है मैंने देखा है खुद को बदलते मैंने खुद को खुद के लिए संवरते देखा है। ©Advitiya goswami

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