कि बेशक़ अपनी बात रखो,
आग्रह करो, मनाओ,
पर मिर्ज़ा दूसरों की टांग खिंच कर नहीं।
अपनी गलतियों की भरपाई करो,
पर किसी पर इल्म लगा कर नहीं।।
रुख़तसर हुए आप अपनी ख़ातिर,
यूँ गैरों की कमाई पर नज़र कर नहीं।।
आधार बनाओ अपनी कबिलियत का
औरों पर नजरें धार कर नहीं।
ज़माने ने क्या कहा, क्या देखा, क्या सुना,
तुम वही करो जो लगती तुम्हे सही,
फिर भी मिर्ज़ा अपनों पे वार कर नहीं।।
©Rupesh Soni
#fisherman